aditya hridaya stotra in hindi

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आदित्यहृदय स्तोत्र, जो आदित्य के हृदय में स्थित है, हिंदी में निम्नलिखित रूप में है। यह स्तोत्र महर्षि वाल्मीकि द्वारा ‘रामायण’ के बालकाण्ड में आदित्य के समर्थन में संवाद के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

 

आदित्यहृदय स्तोत्र:

 

ॐ ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्‌। रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्‌॥

दैवतानुग्रहेण ह्यवशिष्टो रवाण्‌।

हनुमान्‌त्वां नमस्कृत्वा यान्ति देवाःअभिरक्षितम्‌॥

आत्मत्वान्परिपूर्तां ते जगतो विपरीतां।

रक्षसां चापि सर्वेषां स्वस्थत्वाय तथा अर्जुन॥

नमोऽस्तु ते व्यास विशालबुद्धे फुल्लारविन्दायतपत्रनेत्र। येन त्वया भारततैलपूर्णः प्रज्वालितो ज्ञानमयप्रदीपः॥

त्वमक्षरं परमं वेदान्तवेद्यं पुरातो वित्तस्त्वया वेद्यते।

तस्मै नमः श्रीगुरवे दासयास तस्मै नमः॥

विश्वमूर्तये विश्वरूपाय विश्वाय विश्वात्मने नमो नमः।

ॐ अदित्याय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि।

तन्नो हनुमान्‌ प्रचोदयात्‌॥

आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्‌। जयावहं जपेन्नित्यमक्षय्यं परमं शिवम्‌॥

जयाय जयभद्राय हर्याश्वाय नमो नमः।

सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥

नमः सर्वव्यापिने विरिञ्चिरूपाय व्यापिने।

अष्टादशाक्षरी मन्त्र स्वरूपाय नमो नमः॥

आदित्यमहं विष्णुमहं विष्णुमहं ब्रह्माहम्‌।

वेदाहमपरोक्षमादित्यः सर्वमङ्गलः॥

रत्नगर्भाय धीमहि। रोगगर्भाय धीमहि। शिखिवाहाय धीमहि। रवये धीमहि।

विश्वात्मने धीमहि। नियमाय धीमहि।

यज्ञरूपाय धीमहि। यज्ञकर्त्रे धीमहि।

सुन्दराय धीमहि। ब्रह्मवर्चसे धीमहि। सहस्रांशविधाय धीमहि। सप्ताश्वाय धीमहि।

वायुपुत्राय धीमहि। वायुबलाय धीमहि।

सहस्रांशविधाय धीमहि। वानराय धीमहि।

हनुमान्‌त्वां नमस्कृत्वा यान्ति देवाःअभिरक्षितम्‌॥

आत्मत्वान्परिपूर्तां ते जगतो विपरीतां। रक्षसां चापि सर्वेषां स्वस्थत्वाय तथा अर्जुन॥

इति श्रीमद्वाल्मीकिरामायणे आदित्यहृदयं सम्पूर्णम्‌॥

 

इस स्तोत्र का जप और सुनना, विशेष रूप से सूर्य जयंती और नवरात्रि जैसे अवसरों पर किया जाता है। यह स्तोत्र भक्तों को धैर्य, शक्ति और सफलता प्रदान करने में सहायक माना जाता है।

 

आदित्य हृदय स्तोत्र हिंदी में अर्थ:

 

आदित्य हृदय स्तोत्र एक प्राचीन संस्कृत श्लोक संग्रह है जो आदित्य (सूर्य) के गुणों और महत्व का वर्णन करता है। यह रामायण के युद्धकाण्ड (अयोध्याकाण्ड के अन्तर्गत) में रविगर्भ-संवाद के रूप में मिलता है। यह विशेष रूप से भगवान राम ने रविगर्भ (सूर्य पुत्र कुश) से सीखा था और उन्होंने युद्ध के प्रारंभ में रावण के विनाश के लिए इसे चंड्रयुद्ध के पहले पठाया था।

इस स्तोत्र में आदित्य के विभिन्न नामों का उल्लेख है और उसके गुणों, महत्व और शक्ति का वर्णन किया गया है। सूर्य को विभिन्न देवताओं, देवीयों, राक्षसों, राजाओं और ऋषियों ने आशीर्वाद दिया है तथा इस स्तोत्र के पाठ से भक्त शक्तिशाली बनता है और विजयी होता है।

यहां एक उदाहरण दिया गया है स्तोत्र के पहले कुछ श्लोकों का अर्थ:

ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्। रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्॥

अर्थ:

इसके बाद युद्ध के लिए विश्रांति प्राप्त होने पर, युद्धस्थल में स्थित होकर सोचने लगे। रावण को अपने सामने खड़ा देखकर, जो युद्ध के लिए तैयार था।

दृष्ट्वा आदित्यं रविपुत्रं संज्ञां ततोऽभवत्स्थितम्। एषा ते अभिगमे युक्ता क्रियतां त्वयि मानद।।

अर्थ:

उन्होंने रविपुत्र आदित्य (सूर्य पुत्र कुश) को देखा, जो वहां प्रतीत हुआ। तुम्हारे आगमन के लिए वह तैयार है।

कर्णपूरगमनं शौरिः श्रुत्वा शत्रुनिबर्हणम्। महारथसमाविष्टो रविराजवधोद्यतः।।

अर्थ:

शौरि (राम) ने कर्णपूर को जाने का निश्चय किया और शत्रुओं को नष्ट करने वाले को सुनकर, महारथी रथ पर आसीन होकर तैयार हो गए, सूर्य (कुश) ने रथ को उठाने का संकेत दिया।

यह स्तोत्र प्रत्येक श्लोक का महत्वपूर्ण भावार्थ है, जो भगवान सूर्य के महत्व को समझने और उससे कृपा प्राप्त करने में मदद करता है। इसे अधिक समझने के लिए, आप आदित्य हृदय स्तोत्र का पूरा पाठ कर सकते हैं और उसका अनुवाद देख सकते हैंl

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