chaupai sahib in hindi,चौपाई साहिब इन हिंदी

chaupai sahib in hindi,चौपाई साहिब इन हिंदी

 

 

chaupai sahib in hindi,चौपाई साहिब इन हिंदी
chaupai sahib in hindi,चौपाई साहिब इन हिंदी

 

 

पाठ ‘चौपाई साहिब’ हिंदी में निम्नलिखित है:

सिरी असधुज जू कीरत करैं। जू दिन पर धरि दिनदयालैं॥
जूध्द बिचारैं अर्जुनहिं तुम। तैं सगल पसारंतुम्हारैं॥
चौपई॥
बेद कतेब अवलम्बियाँ तुमारे। कवण कहिं कवन तुम्हें विचारे॥
भये अनेक अधिकारी दाता। इन्ह तुम सम कवन कविता॥
कौन गुण तुम्हरे को गावैं। सचा एक सुन्दर वावैं॥
सरब सुखा बरम परमेश्वरा। कृपा निधान तुम अधिकारा॥
जू दिन चरावैं सगल बारी। बुरयी भलयी ग्रासि उचारी॥
सकल सृष्टि तुम्हारी उपाइ। तिस तें तेवदु न आवैं थाइ॥
देवां दानव मुनिगन केंद्र। तुम सम कोऊ नहिं आन्तर॥
जब ते युग सहस्र युगांतर। तब तें जूग हुंकारों भांतर॥
अकाल मूरत अजूनी सैभं। गुर प्रसादी जो नित्त दैभं॥
सभि जगत ते छै खल कालम। सभ लुभत भए संतन जगतम॥
तुम्हें जन प्रतिपारित भारी। बनय सुधि लोभि मोह चारी॥
दुस्ट दोष टेज तुम्हारे। ते काम क्रोध विकार नवारे॥
कल काल करि दियो निरंकार। गुरु स्वयं जोति रूप उजार॥
सभि दुखाहरे तुम सम कोऊ। सुखी बसैं मुक्ति गमजू॥
जो इति साहिब गुरू तें ध्याइ। जन नानक तिन कै आई भलाइ॥
नित निमख बैठै निधि निधान। गुर गोविन्द जन सुख मान॥
धूरि सुभाव अबगुन अभागे। दूसरि कदे नहीं आगे॥
दस्वैं दुवारै जनम सुख होइ। सगल दुखों कै टरै सोइ॥
जो यह पाठ करै नित्य अनेक। अखिर जान सकै को टेक॥
पाठ करायं सोहि उधारे। धान्य धान्य होइ जगत तारे॥
दुशट दोख ते लै बचाये। गुरु सबदी मिलये राये॥
जनम जनम की होइ सिखै। सतगुरु के सेवा भखै॥
भावैं भगति जिनि जगत माहीं। सोइ सोइ दुख पावै नाहीं॥
पूरन प्रेम धन छाहै। हरि कारज सो पूरा कराहै॥
सो छाहै सोई सरब समाना। तिन प्रताप महिमा अपारा॥
पाठ करायं सोहि सुख भावै। सो जनु जानै सदा सुख पावै॥
जिनि सिखिआ सो सिखु उदारा। परसंत के करज निमारा॥
जो जो सेवै सो सेववंता। सबदि जिनि बाणि सबदि पठाया॥
सोइ अचिंत आचारी। सो छाहै सोहि उधारी॥
सो सो रूप न रंग जाता। सो सो सिख अचिंत माता॥
पाठ करायं सो रंग न पाइ। सो सो खिन महिमा उचाइ॥
धूरि उपरि बास कर साका। गोविन्द गुण गावत काका॥
धनि जनि तुलसी जाकी देई। हरि कारज सभि पूरे होई॥
जिनि सिखा सो सिखिआ उधारे। बिनु नावै जम कै तारे॥
सभि धूरि थूटै सदैव लागे। बहु कवन भांति बिगास अंगै॥
सिखां को हुकमु आखै आकार। जो भावै सोई करता उपार॥
जिसु दीआ जीआ आइ धरै। सोई सोहि सबसै उचरै॥
जिनि प्रसादु पाइ रखवार। सोई सोहि करता संसार॥
भजु हरि सोइ जग सरनाइ। सब उधारण हरि बिनु आइ॥
तिन कै कछु नहिं होवै भारी। सभ धूरि थूटै सदा भारी॥
जिनि गुरू ने मिलया मोहि। आइ आस पास नामु तोहि॥
साचा नामु अखुटि काढै। सगल संगति के रंगराढै॥
अधिकारी अंदरि जिनि जाता। अजा जूज अजा जापता॥
कहै नानक सुनहु रे संता। जिनि प्रसादु तेहि उधारा॥
जो इति चिति तिनि तोहि दिखाइ। इती जूझ चलावहु चिति लाइ॥
जिनि प्रसादु सिखर दिया। सभि किछु पाइ सुख भइ॥
धनि धनि भगत जना के दास। जिनि सिखिआ सोई उधास॥
पूरन सत गुरू के गिआने। सिख सतिगुरू कै भाने॥
परतिपारित करण सुआमी। दुखिआं के दुख तारन हामी॥
जिनि प्रसादि जगत संतोखै। सोई सचिआरी राजा॥
सो सो रूप न रंग जाता। सो सो रंग रचा नाता॥
पाठ करायं सो सब किछु पावै। जो सतिगुरु की सेव लगावै॥
जिसु नो दानु न बिचारी। तिसु बारन होइ उधारी॥
पाठ करायं सोहि सुखी होवै। गुर चरन तह फल पावै॥
जिनि सिखिआ सो सिखिआरा। सो सो गोबिंद बखानहारा॥
सुखी बसैं गोविन्द जन। सदा अनंत निरंतरी ध्यान॥
पूरन सत गुरू के प्यारे। जिनि प्रसादि सदा जपियहु तारे॥
जिनि प्रसादि सत गुरू मिलाइ। तिन पार पाइआ सुख दाता॥
जिनि प्रसादि सचिआरी सिखिआ। गोविन्द भगति पाइ लइआ॥
जिनि प्रसादि सत गुरू जिनी। सो सो रंग रता लहिणी॥
पूरन सत गुरू सोई धनी। सिख ते उधारे जीउ जनी॥
सत गुरू सची बाणी सोही। सिख ते उधारै सभि कोही॥
जिसु दीआ जीआ आइ धरै। सो सचेस्वरि सचा करै॥
सतगुरू के भाणे पूरे। हरि दरगह इठ कारज सवारे॥
सतगुरू की वडिआई। वडा होवै ते निस्तारी॥
सतगुरू के उपदेस सोई। सतगुरू के उपरि भोग रोई॥
जिस नो दानु तिसु सचु पाइ। सो सतगुरू जीउ कै सजाइ॥
सतगुरू सच सुख संवारे। सतगुरू भवजल तारे॥
सतगुरू के चिति न लागै। सतगुरू के भाणे परवारी॥
जिस नो दानु तिसु जीआ पावै। सो वीचारे तिसु वीचारै॥
जिसु दीआ विरला कोइ। सो जीअवै जानै सभि सोइ॥
जिनि दीआ सोई गुरु पाइ। सोई सिख उतम नाइ॥
जिसु दीआ सोई भवनिहारा। जिस नो दानु तिसु सचु उधारा॥
जिसु दीआ सो छुटै न भारी। सो छुटै विचारा विचारी॥
जिसु दीआ सो सुख फल पावै। जिसु दीआ सोहि सत गुरु जावै॥
जिसु दीआ सो वरण धरै। सो भले भाग अपनी उधारै॥
जिसु दीआ विसरदा भवनु चुकै। सो सतगुरु भवनि लुकै॥
जिसु दीआ बचनि आपि बिचारे। जिसु दीआ त्रिपति अभिवारे॥
जिसु दीआ सो सुखी भवनि होई। जिनि सेविआ तिनि सोई॥
जिसु दीआ जीअवै मरै माइआ। तिसु जनि जाणै अपराध न दिआ॥
जिसु दीआ तिसु भवनु न भाइ। सोई सोई सदा सदाइ॥
जिसु दीआ वीचार वीचारी। तिसु जनि जाणै सभि संसारी॥
जिसु दीआ विडंबिनि बिगासै। जिसु दीआ सो चाले नित्त बासै॥
जिसु दीआ नदरि न आवै। तिसु जनि सचु बिबेकु गावै॥
जिसु दीआ अनदि अनीलु अनादि। तिसु जनि सासि सासि समादि॥
जिसु दीआ सो तेलु गुणीतु। तिसु जनि जाणै सभि कूटीतु॥
जिसु दीआ सो परवाहु नाही। सोई सोई सदा सदाही॥
जिसु दीआ सो प्रभु पाइ। जिसु दीआ सो सत तिआइ॥
जिसु दीआ सोहि तुहिन उपाइ। सो सदा रहै सचु समाइ॥
जिसु दीआ तिनि सभि सुख पाइ। सो जीअवै तिनि अंतु न जाइ॥
जिसु दीआ तिसु पाइआ सोई। जिसु दीआ सोहि फल पाइ॥
जिसु दीआ सोई चरणु धोइ। जिसु दीआ सो जनमु न होइ॥
जिसु दीआ सोई तुमरा धनी। जिनि सेविआ तिनि धुरि लखानि॥
जिसु दीआ जीअवै मरै माइआ। तिसु जनि जाणै अपराध न दिआ॥
जिसु दीआ जगत संतोखै। सो सचेस्वरि रखवारै॥
जिसु दीआ सो जनमु सफलै। सोहि सोहि सबदि अभिवारै॥
जिसु दीआ सोई सुख बिगासै। सबदि विचारि सोई सचु पासै॥
जिसु दीआ सोहि सुख मानै। सोहि सोहि सद वसतु अचिनै॥
जिसु दीआ तिसु भवनु न भाइ। सचे साहिब का अंतु न पाइ॥
जिसु दीआ सोई जिनि दाता। जिसु दीआ सोहि अवरु न काता॥
जिसु दीआ सोई सभि तूती। सभि उचै सोई नाही भूती॥
जिसु दीआ सोई सभि गढ़ारी। सचा साहिब गुरू गोबिंद सवारी॥
जिसु दीआ सोई सुखी होइ। जिसु दीआ सोई सतगुरु जाइ॥
जिसु दीआ जिसु दीआ करै। सोई सोई सदा सुखु तरै॥
जिसु दीआ सोहि जिसु दीआवै। तिसु सतगुरु जीउ धरवावै॥
जिसु दीआ जिसु सतिगुरू दे। सो तूटै विचारा तूटै सेव॥
जिसु दीआ तिसु दूरि वसै। सो जाणै जिनि आणै जाणै॥
जिसु दीआ सोई सुखु पाइ। जिसु दीआ सोई सतगुरु जाइ॥
जिसु दीआ जीअवै मरै माइआ। तिसु सतगुरु जाणै अपराध न दिआ॥
जिसु दीआ सो सतगुरु दे। तिनु जनि जाणै सतगुरु रहे॥
जिसु दीआ सो भवनु न भाइ। सोहि सोहि सतगुरु का जीवा जणै॥
जिसु दीआ सो सतगुरु दे। सबदि विचारि सोही चले॥
जिसु दीआ तिनि सभि कुछु पाइ। सो जाणै जिनि सतगुरु चले॥

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