Vedic Math, वैदिक गणित

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Vedic Math, वैदिक गणित
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वैदिक गणित: भारतीय गणित की अमूल्य धारा

गणित हमारे जीवन में गहरी रूप से संबद्ध है और यह एक प्राचीन विज्ञान है जो हर क्षेत्र में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारतीय सभ्यता में वैदिक गणित को एक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है, जो हमें न केवल गणित के साथ-साथ अन्य जीवन क्षेत्रों में भी बेहतर बनाने में सहायता करता है। इस लेख में, हम वैदिक गणित के महत्व, इतिहास, और इसके मुख्य सिद्धांतों पर विचार करेंगे।

 

पृष्ठभूमि:

भारतीय गणित की एक महत्वपूर्ण धारा, वैदिक गणित, मूल रूप से वेदों के आधार पर विकसित हुई है। यह प्राचीन गणित का एक अद्वितीय अंश है जो बहुत संक्षेप में और आसानी से समझ में आने वाले नियमों का उपयोग करता है। वैदिक गणित को अधिकतर स्कूलों में शिक्षा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है, क्योंकि यह छात्रों को गणित के जटिल सिद्धांतों को सरल तरीके से समझने में मदद करता है।

 

 

Vedic Math, वैदिक गणित
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महत्व:

“वैदिक गणित का अत्यंत महत्व है क्योंकि यह गणित को सरल बनाने के साथ-साथ मनोबल भी देता है”। यह शिक्षा में छात्रों के मन को ताजगी और स्पष्टता प्रदान करने का एक अद्वितीय तरीका है। इसके साथ ही, यह छात्रों को गणितीय कला के प्रति रुचि बढ़ाने में भी मदद करता है। वैदिक गणित के अनुसरण से, छात्र विभिन्न गणितीय समस्याओं को हल करने की क्षमता विकसित करते हैं और आत्मविश्वास की विकास करते हैं।

 

वैदिक गणित की प्रमुख विशेषताएँ:

एकाधिकार सिद्धांत (Ekādhikāra Siddhānta): यह सिद्धांत कहता है कि जब दो संख्याएं एकाधिक के साथ जोड़ी जाती हैं और उनमें से एक अंक आपस में मिलता है, तो वह अंक हमेशा उत्तर का हिस्सा होगा। इसका उदाहरण लेते हैं – 46 + 24 = 70। यहां दोनों संख्याओं के अंक 4 का योग 8 देता है और 4 ही उत्तर का हिस्सा है। यह सिद्धांत गणितीय कार्यों को तेजी से करने में मदद करता है।

 

निधनसूत्र (Nikhilam Sutra): यह सूत्र संख्या को दस के साथ घटाने का तरीका देता है। इसमें संख्या के एकाधिकार संख्या को घटाया जाता है और उत्पन्न शेष संख्या को लिया जाता है। यह तरीका विशेष रूप से बड़ी संख्याओं के लिए उपयोगी होता है। उदाहरण के लिए, 100 – 37 = 63। यहां 37 को 100 से घटाया जाता है और शेष संख्या 63 होती है।

 

द्वंद्वयुग्म (Dvandvayugma): यह सिद्धांत दो समान या उल्टे पक्षों के संख्याओं के गुणनखंड को सरल बनाने के लिए है। इसमें एक या अधिक तार्किक संख्याओं को संयोजित करके एकल संख्या का निर्धारण किया जाता है। उदाहरण के लिए, 18 x 32 = (20-2) x (30+2) = 576। यहां संख्याएं आसानी से विभाज्य हो जाती हैं और गुणनखंड 576 होता है।

 

उर्ध्वतिर्यग्भ्याम् (Urdhvatiryagbhyam): इस सूत्र के अनुसार, दो संख्याओं के वर्ग का योग या घटाव उन दो संख्याओं के बीच के संख्या का निर्धारण करता है। इससे वर्गमूल, वर्ग और गुणनखंड आसानी से प्राप्त होते हैं। उदाहरण के लिए, 32 x 28 = (30+2) x (30-2) + 2^2 = 896। यहां 32 और 28 के बीच की संख्या 2 है और उत्तर 896 होता है।

 

वैदिक गणित की यह प्रमुख विशेषताएं हमें गणितीय कार्यों को सरल बनाने और गणितीय सोच को विकसित करने में मदद करती हैं। यह हमारी संख्यात्मक क्षमता और गणितीय नजर

 

 ll    धन्यवाद   ll

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